400 साल पहले शुरू हुई थी मिड डे मील स्कीम
भागलपुर, [कामरान हाशमी]। शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकारों ने स्कूलों में भले ही कुछ वर्ष से मध्याह्न भोजन योजना की शुरुआत की है, लेकिन इसका इतिहास काफी पुराना है। इतिहास के पन्नों में आज से करीब 400 वर्ष पूर्व मौलाना चक के मदरसा शहबाजिया में हजरत मखदूम शहबाज मुहम्मद द्वारा स्थापित मदरसे में मध्याह्न भोजन योजना लागू थी। तब मदरसे में हिंदू बच्चे भी शिक्षा ग्रहण करते थे।
इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में मदरसे के बारे में काफी कुछ विस्तार से लिखा है। डा. एसएम राफिक ने शहबाज ज्योति में लिखा है कि हजरत मखदूम शहबाज मुहम्मद का भागलपुर आगमन 986 हिजरी [1578 ई.] को हुआ था। यहा उन्होंने एक मरदसा की स्थापना की थी। झारखंडी झा द्वारा लिखित भागलपुर दर्पण में उल्लेख है कि हजरत मखदूम शहबाज मुहम्मद द्वारा स्थापित मदरसे में करीब 200 मुस्लिम और हिंदू छात्र शिक्षा ग्रहण करते थे। छात्रों को दोपहर का भोजन और वस्त्र भी दिया जाता था। उस समय तक मदरसा शहबाजिया जिले का पहला मदरसा था। मुगल शासकों ने मदरसे के खर्च के लिए कहलगाव परगने की 500 बीघा जमीन दी। तब लतीफ, तायक, अफजन, हफीज, आवकील, आलोद और माहूद जैसे प्रसिद्ध मौलवियों ने यहा से निकल प्रात में विद्या का प्रचार किया।
जहागीर से लेकर अंतिम मुगल शासक तक मदरसे की काफी ख्याति रही। राबर्ट मोंटगुमरी मार्टिन ने 1838 में लिखी अपनी पुस्तक में मदरसे की चर्चा करते हुये कहा कि 100 वर्ष पूर्व भागलपुर हिंदू-मुस्लिम शिक्षा का केंद्र था। उस समय हजरत मखदूम शहबाज मुहम्मद के वंशज काजी फायक अरबी के प्रकाड विद्वान थे। उनके घराने में उस समय 20 मौलवी जीवित थे। मौलाना चक विद्या प्रचार का केंद्र था। 18वीं शताब्दी में खंजरपुर और भोजुआ [गोगरी, खगड़िया] में भी मौलाना हयात के समय मदरसा में भोजन वस्त्र मुफ्त देकर बच्चों को शिक्षा दी जाती थी। पीसी राय चौधरी के जिला गजेटियर के अलावा कयाम उद्दीन अहमद, फ्रासिस बुकानन और एसएच अस्करी ने भी अपनी किताबों में शहबाजिया मदरसे का विस्तारपूर्वक विवरण किया है। जिला गजेटियर में यह भी लिखा है कि मुगल शासक के फौजदार मिर्जा गुलाम हुसैन खान ने मदरसा का पक्कीकरण बादशाह के हुक्म पर कराया। अब भी मदरसा में बिहार और झारखंड के अधिकाश जिलों के बच्चे शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। वर्तमान में इस मदरसा में 80 छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। यहा के छात्र हाफिज व आलिम की डिग्री लेने के बाद इस्लाम की रोशनी फैलाने बाहर जाते हैं।
भागलपुर, [कामरान हाशमी]। शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकारों ने स्कूलों में भले ही कुछ वर्ष से मध्याह्न भोजन योजना की शुरुआत की है, लेकिन इसका इतिहास काफी पुराना है। इतिहास के पन्नों में आज से करीब 400 वर्ष पूर्व मौलाना चक के मदरसा शहबाजिया में हजरत मखदूम शहबाज मुहम्मद द्वारा स्थापित मदरसे में मध्याह्न भोजन योजना लागू थी। तब मदरसे में हिंदू बच्चे भी शिक्षा ग्रहण करते थे।
इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में मदरसे के बारे में काफी कुछ विस्तार से लिखा है। डा. एसएम राफिक ने शहबाज ज्योति में लिखा है कि हजरत मखदूम शहबाज मुहम्मद का भागलपुर आगमन 986 हिजरी [1578 ई.] को हुआ था। यहा उन्होंने एक मरदसा की स्थापना की थी। झारखंडी झा द्वारा लिखित भागलपुर दर्पण में उल्लेख है कि हजरत मखदूम शहबाज मुहम्मद द्वारा स्थापित मदरसे में करीब 200 मुस्लिम और हिंदू छात्र शिक्षा ग्रहण करते थे। छात्रों को दोपहर का भोजन और वस्त्र भी दिया जाता था। उस समय तक मदरसा शहबाजिया जिले का पहला मदरसा था। मुगल शासकों ने मदरसे के खर्च के लिए कहलगाव परगने की 500 बीघा जमीन दी। तब लतीफ, तायक, अफजन, हफीज, आवकील, आलोद और माहूद जैसे प्रसिद्ध मौलवियों ने यहा से निकल प्रात में विद्या का प्रचार किया।
जहागीर से लेकर अंतिम मुगल शासक तक मदरसे की काफी ख्याति रही। राबर्ट मोंटगुमरी मार्टिन ने 1838 में लिखी अपनी पुस्तक में मदरसे की चर्चा करते हुये कहा कि 100 वर्ष पूर्व भागलपुर हिंदू-मुस्लिम शिक्षा का केंद्र था। उस समय हजरत मखदूम शहबाज मुहम्मद के वंशज काजी फायक अरबी के प्रकाड विद्वान थे। उनके घराने में उस समय 20 मौलवी जीवित थे। मौलाना चक विद्या प्रचार का केंद्र था। 18वीं शताब्दी में खंजरपुर और भोजुआ [गोगरी, खगड़िया] में भी मौलाना हयात के समय मदरसा में भोजन वस्त्र मुफ्त देकर बच्चों को शिक्षा दी जाती थी। पीसी राय चौधरी के जिला गजेटियर के अलावा कयाम उद्दीन अहमद, फ्रासिस बुकानन और एसएच अस्करी ने भी अपनी किताबों में शहबाजिया मदरसे का विस्तारपूर्वक विवरण किया है। जिला गजेटियर में यह भी लिखा है कि मुगल शासक के फौजदार मिर्जा गुलाम हुसैन खान ने मदरसा का पक्कीकरण बादशाह के हुक्म पर कराया। अब भी मदरसा में बिहार और झारखंड के अधिकाश जिलों के बच्चे शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। वर्तमान में इस मदरसा में 80 छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। यहा के छात्र हाफिज व आलिम की डिग्री लेने के बाद इस्लाम की रोशनी फैलाने बाहर जाते हैं।
अच्छी जानकारी दी आपने .. आभार
ReplyDeleteजानकारी भरा आलेख देने के लिए धन्यवाद।
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