Friday, April 3, 2009

मुस्लिम संगठन


मुसलमानों का सबसे पुराना संगठन मरकजी जमीयत अहले हदीस हिंद है जिसकी स्थापना 1906 में हुई थी। आजादी के बाद से 1947 में इसका नाम मरकजी अहले हदीस हो गया। इस संगठन के बनने का उद्देश्य था कि चूंकि इस्लाम को मानने वालों में भ्रांतियां पैदा हो गई हैं, इसलिए इन्हें दूर किया जाना जरूरी है। इस संगठन के एक हजार से ज्यादा मदरसे और शैक्षिक संस्थान हैं।

मुसलमानों का दूसरा बड़ा संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद है। इसका गठन भी 1906 में हुआ। जमीयत बुनियादी तौर पर उलेमाओं की संस्था है। हिंदुस्तान में इसका असर ग्रासरूट में ज्यादा है। आजादी के आंदोलन में इसने बढ़-चढ़कर भाग लिया। सर सैय्यद के अंग्रेज परस्त रूख के विरूद्ध उलेमाओं ने कांग्रेस का साथ दिया जिसका कांग्रेस को बहुत फायदा हुआ। इन दिनों यह संगठन दो हिस्सों में बंट गया है जिसमें एक के नेता अरशद मदनी साहब है तथा दूसरे के नेता महमूद मदनी साहब हैं।

तीसरा बड़ा संगठन मुस्लिम लीग है। इसकी भी स्थापना 1906 में हुई थी जिसने 1947 में अपना नाम बदलकर इंडियन यूनियन ऑफ मुस्लिम लीग कर लिया। तमिलनाडु के मु. इस्माइल दिसम्बर 1947 में पाकिस्तान गये जहां मुस्लिम लीग की कांफ्रेंस थी। उन्होंने वहां खुलेआम कायदे आजम जिन्ना से कहा कि अब हमारा आपसे और पाकिस्तान के मुसलमानों से कोई ताल्लुक नहीं है। आप हिंदुस्तान की मुस्लिम लीग को भूल जाइए। उन्होंने हिंदुस्तान आकर मुस्लिम लीग को संगठित किया और तमिलनाडु, केरल और महाराष्ट्र में इसे मजबूत बनाया।

मुसलमानों का चौथा सबसे बड़ा संगठन जमाते इस्लामी है जिसका गठन 1941 में हुआ था पर 1948 में इसका नाम जमाते इस्लामी हिंद हो गया। यह देश के मुसलमानों का केडर बेस्ड और सबसे ज्यादा नेटवर्क वाली संस्था है। पहले यह राजनीति में भाग नहीं लेती थी लेकिन अब लेने लगी है।

पांचवा संगठन आल इंडिया मुस्लिम मजलिसे मुशावरत है जिसका गठन 1964 में हुआ। 2002 में यह दो हिस्सों में बंट गया जिसमें एक के अध्यक्ष डॉ. जफरूल इस्लाम खां तथा दूसरे के अध्यक्ष मौ. सालिम कासमी हैं।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मुसलमानों का महत्वपूर्ण संगठन है, जिसका गठन 1972 में हुआ। इसे बनाने के पीछे असल मकसद था कि जिस तरह दूसरे धर्मों के कानूनों में आजादी के बाद बदलाव आये या संशोधन हुए, वह मुसलमानों में न हो।

1937 में शरीयत एक्ट बना था, वह जैसा का तैसा रहा।

लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसके ऊपर उठकर एक अम्ब्रेला बॉडी बन गई है जो मुसलमानों की सभी समस्याओं पर न केवल राय देती है, बल्कि हल करने की कोशिश करती है। आज यह सबसे प्रभावशाली संगठन है। इसके अध्यक्ष नदवतुल उलेगा, लखनऊ इस्लामी यूनिवर्सिटी के रैक्टर मो. राबे हसन नदवी हैं और मो. सैय्यद निजामुद्दीन इसके महासचिव हैं, जो इमारते शरिया, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के अमीर हैं। इस संगठन में शिया और वोहरा सभी शामिल हैं।

ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल का गठन 1992 में हुआ, जिसके पहले महासचिव काजी मुजाहिदुल इस्लाम बने। इसका ढांचा पहले कम्युनिस्ट पैटर्न पर था, पर बाद में, काजी साहब के निधन के बाद अध्यक्ष और महामंत्री की तर्ज पर हो गया। अभी मो. अब्दुल्ला मुगेंसी इसके अध्यक्ष हैं और डॉ. मंजूर आलम इसके महासचिव हैं। मिल्ली काउंसिल की खास बात यह है कि जमात व जमीयत के अध्यक्ष इसमें सारे संगठन तो हैं ही, पर इसमें सामाजिक, आर्थिक संगठनों के लोग भी हैं। साथ ही, शैक्षिक वर्ग के लोग भी इसमें हैं। मुसलमानों के बीच उभरता संगठन मिल्ली काउंसिल है, जो कोशिश कर रहा है कि मुसलमानों की सामाजिक और आर्थिक समस्याएं हल करने के लिए राजनीतिक दबाव बनाया जाए।

सबसे अजीब हालत में शिया समुदाय है, जो मुसलमानों में भी माइनारिटी में है।

सौ साल पहले ऑल इंडिया शिया कांफ्रेंस बनी थी, जो 1911 से 1942 के बीच सक्रिय थी। प्रिंस अंजुम कदर शियाओं के बड़े नेता रहे हैं। उत्तर प्रदेश में ज्यादातर नवाब व तालुकेदार शिया थे। इन्होंने लखनऊ में संपत्ति खरीदी और ट्रस्ट बनाये। इतिहास के अनुसार, अकबर के नौ रत्नों में पांच शिया थे। इन्हें मुसलमानों में पढ़ा-लिखा माना जाता है, लेकिन राजनीतिक रूप से पिछड़ा तबका है। शिया कांफ्रेंस के पास संपत्ति है, लेकिन वह किसके हाथ में है, पता ही नहीं चल पाता। शिया पर्सनल लॉ बोर्ड बना, पर इसका कोई पुरसाहाल नहीं है। इतना बड़ा समुदाय जिसकी छह करोड़ के लगभग आबादी है, यह कैसे अपना वजूद बनाये है, यह सवाल किसी में मन में खड़ा हो सकता है।

इसके अलावा सूफी संगठन हैं, जो देश में अमन का पैगाम फैला रहे हैं।

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