मूलतः राजस्थान के मेंहदी हसन ने आठ साल की उम्र से गजल गायकी की शुरूआत की थी. 74 साल तक लगातार गजल गायन करनेवाले सुरों के देवता मेंहदी हसन बीमार हैं और परिवार उनके इलाज के लिए कराची अस्पताल का बिल भरने में असमर्थ हैं. गजल गायकी में ऐसा दुखद क्षण पहले शायद ही कभी आया हो. उनका स्टेज शो बंद हो गया है. आखिरी बार 9 साल पहले उन्होंने भारत में स्टेज शो किया था, इसलिए आमदनी भी बंद है. जिनकी गायी गजलों से करोड़ों का व्यापार हो रहा है वे पैसों के अभाव में अपना इलाज भी नहीं करा पा रहे हैं, क्या उनके चाहनेवालों के लिए इससे ज्यादा दुखद कुछ हो सकता है?
गा मेरे दीवाने दिल, इस दुनिया से क्या हासिल।
हम लोगो से कोई प्यार करे, हम लोग नहीं हैं इस काबिल।।
बरसों पहले मेंहदी हसन साहब ने इस गजल में जिस सच को पिरोया था आज वो उसी से रु-बरु हो रहे हैं। गजल सम्राट बीमार हैं और बीते नौ बरस से नहीं गा पा रहे, ये खबर मैंने अखबार के एक कोने में दबी पड़ी देखी। लेकिन उन्होंने इतना ज्यादा गाया है कि उनके न गा पाने का अंदाजा लगाना मुश्किल है। खबर के आगे का हिस्सा परेशान करने वाला था कि इस महान गायक की तीमारदारी ठीक से नहीं हो पा रही। परेशानी ने मेरी संवेदना को तब और झकझोर दिया जब ये पता लगा कि उनकी तीमारदारी स्टेज शो से जुटाये पैसे से चलती है। म्युजिक कंपनियों को करोड़ों का कारोबार कराने वाले मेंहदी हसन साहब को इतनी रायल्टी भी नहीं मिलती कि वो अपनी चिकित्सा का खर्च उठा पाएं। अफसोसजनक है कि उनके पास इतनी बचत या आमद भी नहीं कि वो डाक्टरों को फीस अदा कर पाएं।
खबर से ये भी है कि अब पाकिस्तान की ऐसी हालत नहीं कि वहां मौसिकी यानी संगीत का कोई जलसा हो पाए। पाकिस्तान में फंसे मेंहदी हसन के परिजनों का दर्द है कि जब जलसा नही होगा तो आमद कैसे होगी और अगर आमद नहीं होगी तो इस महान फनकार की तामीरदारी कैसे होगी। बड़ी मुश्किल से करांची के अस्पताल को मेंहदी हसन के तामीरदारी की किस्त दी जा सकी है। जिसने अपने पाकीजगी भरे फन से बीमार दिलों में मोहब्बत का फलसफा भरने का बरसों काम किया। और आगे भी करता रहेगा। उसे ये सिला मिल रहा है। अफसोस है ऐसी व्यवस्था पर जहां देने वालों के बचे रहने की ही गुंजाईश कम से कमतर होती जा रही है। मेंहदी हसन साहब को सिर्फ इसलिए परेशानी उठानी पड़ रही है कि उन्होंने कभी परवाह नहीं की कि उनकी आवाज से करोड़ों बना लेने वाली म्युजिक कंपनियों के साथ कुछ इस तरह का सौदा किया जाए कि वो सहुलियत से सांस ले पाए। वैसे मेहदी हसन साहब की आवाज को बेचकर करोड़ों का कारोबार खड़ी कर लेने म्युजिक कंपनी के लोग मौके से गायब हैं। गायब हम सब भी हैं जो मेहदी हसन की आवाज से अपनेपन और अजीब से ताजगी का अहसास करते हैं।
मेंहदी हसन की ये हालत उनके करोड़ों प्रशंसकों को परेशान करने वाली है। परेशान सुर साम्रागी लता मंगेशकर भी हैं। लता जी मेंहदी हसन साहब की आवाज को भगवान की आवाज का दर्जा देती हैं और इबादत करती हैं। वो कोशिश में है कि मेंहदी हसन साहब की तामीरदारी भारत में हो। लेकिन उनकी कोशिश को मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले से झटका लगा है। दोनों देशों में रिश्ते बिगड़ने का ग्रहण हसन साहब पर लगा और परिजनों के साथ भारत आने के लिए वीसा आदि का काम रोक दिया गया। देखिए व्यवस्था की करामात हसन साहब की आवाज में लुफ्त मिलता है इसलिए आवाज पर कोई रोक नहीं लेकिन आवाज लगाने वाले बेबस इंसान के आने पर रोक है। हसन साहब जब तक एक्टिव रहे दो देशों की राजनीतिक सीमा कभी आड़े नहीं आई। व्यापार की थाप ने कभी अहसास नहीं होने दिया कि हसन साहब पाकिस्तानी हैं या भारतीय लेकिन जैसी ही बीमार हूए अहसास करा दिया गया इंसानी सीमा का।
और दिल उनका जारो जार रो कर बोला होगा.
जीने की तमन्ना मिट भी चुकी, फिर किसलिए जीता हूँ!
शायाद के कभी मिल जाओ कही मैं इसलिए जीता हू!!
वतन की जुदाई क्या होती है बताने की ज़रूरत नहीं हम सब जानते है. मेंहदी हसन साहब की हालत से मैं खुद को ज्यादा आहत इसलिए भी महसूस कर रही हूं कि मैं एक रेडियो जौकी हूं। बगैर सीमाओं का बंधन समझे हसन साहब की गजल रेडियो के जरिए श्रोताओं तक पहुंचवाती रही हूं। और ये भी बता दूं कि सबसे ज्यादा फरमाईशी फोन काल उनकी गजलों के लिए ही आती हैं। अखबार में खबर पढ़ने से पहले तक मैं बेखबर थी कि इतने महान फनकार के साथ दुनिया ये सिला कर रही है। उन्हें फेफड़े में संक्रमण है और बेहतर तामीरदारी के लिए तुरंत भारत लाने की जरूरत है। आहत हूं कि उनके आने के रास्ते रुके पड़े हैं। ज्यादा परेशान इसलिए भी कि मैंने अपने दादा जी को दादी के लिए हसन साहब की गजल गुनगुनाते सुना है..
बहुत खुवसूरत है,मेरा सनम।
खु्दा ऐसे मुखड़े बनाता है क़म।।...
मेंहदी हसन साहब ने ऐसी ही पांच हजार से ज्यादा गजलों को दिशकश आवाज देकर दुनिया में सिर्फ मोहब्बत और मोहब्बत और भी मोहब्बत बांटने का काम किया है। फजां में मोहब्बत का घोल भरने वाले और पीढियों से दिलों से गम को दूर करने के कारोबार में लगे महान फनकार का दर्द दुनिया का दर्द बनना चाहिए था। लेकिन अफसोस की ऐसा नहीं हुआ. दिल उनका कह उठा कि-
दिल मैं तूफ़ान छुपाये बैठा हू !!
ये न समझो मुझे प्यार नहीं!!
मेंहदी हसन का पिछला स्टेज शो 2000 में भारत में ही हुआ था। अगला शो मुंबई में आयोजित था लेकिन गाने में दिक्कत महसूस हुई। जांच में फेफड़ों में संक्रमण का पता लगा सो उन्होने परिजनों के पास करांची जाने का फैसला लिया और तब से ऐसे हालत नहीं बन पाए कि वो भारत आएं या फिर स्टेज से अपनी आवाज की जादू बिखेरकर परेशान दिलों को सकूं दे पाएं। मेंहदी हसन साहब का स्टेज से सुनाए जाने वाले कई मशहुर वाकए हैं लेकिन उनमें हम जैसों के दिल को सबसे ज्यादा दिल छुने वाला है-“भारत मेरा वतन है और मुल्क पाकिस्तान।” दो देशों में बंटे प्रशंसकों को अपनेपन का अहसास दिलाने के लिए वो अक्सर कहा करते हैं। ये बात उन्होंने अपनी ग़ज़ल मैं भी कही है-
मुहब्बत ज़िन्दगी है और तुम मेरी मुहब्बत हो.
तुम्ही बंदगी हो मेरी तुम ही मेरी इबादत हो!!
82 साल के मेंहदी हसन साहब का मादरे वतन भारत है। वो राजस्थान से हैं उन का खदान संगीत की सात पुश्तो से तालुक रखता है. और बंटवारे के वक्त मौसिकी को बचाने के लिए घर से कुछ सौ किलोमीटर की दूरी पर बने सहदर के पार जाना कबूल कर लिया था। लेकिन बंटवारे का असर न तो उनकी गायिकी पर पड़ा और न ही रिश्ते पर वो अक्सर भारत के अलग अलग शहरों में स्टेज शो करते नजर आते थे। भारत में उन्हों दो हजार से ज्यादा स्टेज शो किया है और पांच हजार से ज्यादा गजलों को आवाज दी है। हम उनके जल्द ठीक होने की दुआ करते हुए बेजान हो रही व्यवस्था से उम्मीद करते हैं कि वो महान फनकार के इलाज के रास्ते में बने अपनी बीमारी को दूर करे और बेहतर तामीरदारी से मेंहदी हसन साहब एकबार फिर उठ खड़े हो और उन तमाम गजलों को आवाज दें जो उनकी आवाज के लिए तरस रही हैं। आज मेहदीं हसन साहब की यह हालत देखकर लगता है मानों वे कह रहे हों-
मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो..
मुझे तुम कभी भी भुला ना सकोगे!!
गा मेरे दीवाने दिल, इस दुनिया से क्या हासिल।
हम लोगो से कोई प्यार करे, हम लोग नहीं हैं इस काबिल।।
बरसों पहले मेंहदी हसन साहब ने इस गजल में जिस सच को पिरोया था आज वो उसी से रु-बरु हो रहे हैं। गजल सम्राट बीमार हैं और बीते नौ बरस से नहीं गा पा रहे, ये खबर मैंने अखबार के एक कोने में दबी पड़ी देखी। लेकिन उन्होंने इतना ज्यादा गाया है कि उनके न गा पाने का अंदाजा लगाना मुश्किल है। खबर के आगे का हिस्सा परेशान करने वाला था कि इस महान गायक की तीमारदारी ठीक से नहीं हो पा रही। परेशानी ने मेरी संवेदना को तब और झकझोर दिया जब ये पता लगा कि उनकी तीमारदारी स्टेज शो से जुटाये पैसे से चलती है। म्युजिक कंपनियों को करोड़ों का कारोबार कराने वाले मेंहदी हसन साहब को इतनी रायल्टी भी नहीं मिलती कि वो अपनी चिकित्सा का खर्च उठा पाएं। अफसोसजनक है कि उनके पास इतनी बचत या आमद भी नहीं कि वो डाक्टरों को फीस अदा कर पाएं।
खबर से ये भी है कि अब पाकिस्तान की ऐसी हालत नहीं कि वहां मौसिकी यानी संगीत का कोई जलसा हो पाए। पाकिस्तान में फंसे मेंहदी हसन के परिजनों का दर्द है कि जब जलसा नही होगा तो आमद कैसे होगी और अगर आमद नहीं होगी तो इस महान फनकार की तामीरदारी कैसे होगी। बड़ी मुश्किल से करांची के अस्पताल को मेंहदी हसन के तामीरदारी की किस्त दी जा सकी है। जिसने अपने पाकीजगी भरे फन से बीमार दिलों में मोहब्बत का फलसफा भरने का बरसों काम किया। और आगे भी करता रहेगा। उसे ये सिला मिल रहा है। अफसोस है ऐसी व्यवस्था पर जहां देने वालों के बचे रहने की ही गुंजाईश कम से कमतर होती जा रही है। मेंहदी हसन साहब को सिर्फ इसलिए परेशानी उठानी पड़ रही है कि उन्होंने कभी परवाह नहीं की कि उनकी आवाज से करोड़ों बना लेने वाली म्युजिक कंपनियों के साथ कुछ इस तरह का सौदा किया जाए कि वो सहुलियत से सांस ले पाए। वैसे मेहदी हसन साहब की आवाज को बेचकर करोड़ों का कारोबार खड़ी कर लेने म्युजिक कंपनी के लोग मौके से गायब हैं। गायब हम सब भी हैं जो मेहदी हसन की आवाज से अपनेपन और अजीब से ताजगी का अहसास करते हैं।
मेंहदी हसन की ये हालत उनके करोड़ों प्रशंसकों को परेशान करने वाली है। परेशान सुर साम्रागी लता मंगेशकर भी हैं। लता जी मेंहदी हसन साहब की आवाज को भगवान की आवाज का दर्जा देती हैं और इबादत करती हैं। वो कोशिश में है कि मेंहदी हसन साहब की तामीरदारी भारत में हो। लेकिन उनकी कोशिश को मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले से झटका लगा है। दोनों देशों में रिश्ते बिगड़ने का ग्रहण हसन साहब पर लगा और परिजनों के साथ भारत आने के लिए वीसा आदि का काम रोक दिया गया। देखिए व्यवस्था की करामात हसन साहब की आवाज में लुफ्त मिलता है इसलिए आवाज पर कोई रोक नहीं लेकिन आवाज लगाने वाले बेबस इंसान के आने पर रोक है। हसन साहब जब तक एक्टिव रहे दो देशों की राजनीतिक सीमा कभी आड़े नहीं आई। व्यापार की थाप ने कभी अहसास नहीं होने दिया कि हसन साहब पाकिस्तानी हैं या भारतीय लेकिन जैसी ही बीमार हूए अहसास करा दिया गया इंसानी सीमा का।
और दिल उनका जारो जार रो कर बोला होगा.
जीने की तमन्ना मिट भी चुकी, फिर किसलिए जीता हूँ!
शायाद के कभी मिल जाओ कही मैं इसलिए जीता हू!!
वतन की जुदाई क्या होती है बताने की ज़रूरत नहीं हम सब जानते है. मेंहदी हसन साहब की हालत से मैं खुद को ज्यादा आहत इसलिए भी महसूस कर रही हूं कि मैं एक रेडियो जौकी हूं। बगैर सीमाओं का बंधन समझे हसन साहब की गजल रेडियो के जरिए श्रोताओं तक पहुंचवाती रही हूं। और ये भी बता दूं कि सबसे ज्यादा फरमाईशी फोन काल उनकी गजलों के लिए ही आती हैं। अखबार में खबर पढ़ने से पहले तक मैं बेखबर थी कि इतने महान फनकार के साथ दुनिया ये सिला कर रही है। उन्हें फेफड़े में संक्रमण है और बेहतर तामीरदारी के लिए तुरंत भारत लाने की जरूरत है। आहत हूं कि उनके आने के रास्ते रुके पड़े हैं। ज्यादा परेशान इसलिए भी कि मैंने अपने दादा जी को दादी के लिए हसन साहब की गजल गुनगुनाते सुना है..
बहुत खुवसूरत है,मेरा सनम।
खु्दा ऐसे मुखड़े बनाता है क़म।।...
मेंहदी हसन साहब ने ऐसी ही पांच हजार से ज्यादा गजलों को दिशकश आवाज देकर दुनिया में सिर्फ मोहब्बत और मोहब्बत और भी मोहब्बत बांटने का काम किया है। फजां में मोहब्बत का घोल भरने वाले और पीढियों से दिलों से गम को दूर करने के कारोबार में लगे महान फनकार का दर्द दुनिया का दर्द बनना चाहिए था। लेकिन अफसोस की ऐसा नहीं हुआ. दिल उनका कह उठा कि-
दिल मैं तूफ़ान छुपाये बैठा हू !!
ये न समझो मुझे प्यार नहीं!!
मेंहदी हसन का पिछला स्टेज शो 2000 में भारत में ही हुआ था। अगला शो मुंबई में आयोजित था लेकिन गाने में दिक्कत महसूस हुई। जांच में फेफड़ों में संक्रमण का पता लगा सो उन्होने परिजनों के पास करांची जाने का फैसला लिया और तब से ऐसे हालत नहीं बन पाए कि वो भारत आएं या फिर स्टेज से अपनी आवाज की जादू बिखेरकर परेशान दिलों को सकूं दे पाएं। मेंहदी हसन साहब का स्टेज से सुनाए जाने वाले कई मशहुर वाकए हैं लेकिन उनमें हम जैसों के दिल को सबसे ज्यादा दिल छुने वाला है-“भारत मेरा वतन है और मुल्क पाकिस्तान।” दो देशों में बंटे प्रशंसकों को अपनेपन का अहसास दिलाने के लिए वो अक्सर कहा करते हैं। ये बात उन्होंने अपनी ग़ज़ल मैं भी कही है-
मुहब्बत ज़िन्दगी है और तुम मेरी मुहब्बत हो.
तुम्ही बंदगी हो मेरी तुम ही मेरी इबादत हो!!
82 साल के मेंहदी हसन साहब का मादरे वतन भारत है। वो राजस्थान से हैं उन का खदान संगीत की सात पुश्तो से तालुक रखता है. और बंटवारे के वक्त मौसिकी को बचाने के लिए घर से कुछ सौ किलोमीटर की दूरी पर बने सहदर के पार जाना कबूल कर लिया था। लेकिन बंटवारे का असर न तो उनकी गायिकी पर पड़ा और न ही रिश्ते पर वो अक्सर भारत के अलग अलग शहरों में स्टेज शो करते नजर आते थे। भारत में उन्हों दो हजार से ज्यादा स्टेज शो किया है और पांच हजार से ज्यादा गजलों को आवाज दी है। हम उनके जल्द ठीक होने की दुआ करते हुए बेजान हो रही व्यवस्था से उम्मीद करते हैं कि वो महान फनकार के इलाज के रास्ते में बने अपनी बीमारी को दूर करे और बेहतर तामीरदारी से मेंहदी हसन साहब एकबार फिर उठ खड़े हो और उन तमाम गजलों को आवाज दें जो उनकी आवाज के लिए तरस रही हैं। आज मेहदीं हसन साहब की यह हालत देखकर लगता है मानों वे कह रहे हों-
मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो..
मुझे तुम कभी भी भुला ना सकोगे!!
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